"श्रीरमण महर्षि से बातचीत"
पुस्तक में एक प्रसंग का वर्णन है :
एक व्यक्ति ने, जो हठयोग का साधक था श्री रमण महर्षि के पास अपना प्रश्न कागज के टुकड़े पर लिखकर भेजा ।
वह व्यक्ति अनेक वर्षों से अपना एक हाथ उठाए हुए था, जिससे उसकी मांस पेशियाँ आदि सख्त हो गईं थीं।
उसने पूछा :
"मेरा भविष्य क्या है?"
महर्षि ने उत्तर दिया :
"वही जो तुम्हारा वर्तमान है।"
इस उत्तर से उसे संतोष नहीं हुआ ।
उसने महर्षि के एक आश्रमवासी भक्त से इसका अभिप्राय पूछा। तब उस भक्त ने कहा :
तुम नित्य, शुद्ध, बुद्ध चैतन्यमात्र हो।
यही तुम्हारा वर्तमान है, और यही तुम्हारा भविष्य भी है।
उस व्यक्ति ने महर्षि को धन्यवाद दिया और उनसे विदा ली।
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