शनिवार, 14 अगस्त 2021

अहंकार-चतुष्टय

कविता : 14-08-2021

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सबको अहंकार ने जीता, 

अहंकार को किसने जीता?

जिसने जाना अहंकार को, 

उसने अहंकार को जीता! 

कर्तृत्व ही तो कर्ता है, 

भोक्तृत्व ही तो भोक्ता है,

ज्ञातृत्व ही तो ज्ञाता है, 

संग्रह ही तो है स्वामी!

जिसने जान लिया है यह, 

फिर कर्ता वह कैसे होगा?

फिर भोक्ता वह कैसे होगा?

फिर ज्ञाता वह कैसे होगा?

फिर स्वामी वह कैसे होगा? 

फिर वह केवल है अस्तित्व,

फिर वह केवल है सन्मात्र, 

फिर वह केवल साक्षी है!

फिर वह केवल है चिन्मात्र, 

फिर वह है केवल भानमात्र!

फिर कैसे वह प्रकट करे?

फिर किससे वह प्रकट करे?

फिर किसको वह प्रकट करे? 

है अद्वितीय, अपरोक्षमात्र!

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।। श्रीरमणार्पणमस्तु ।।

ॐ नमो भगवते श्रीरमणाय 

***

Ego-Quad.

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Who could defeat the ego,

Ego has defeated everyone!

But the one who knew (the Ego), 

Has thus truly defeated the ego! 

The sense of doer-ship,

Is verily the doer!

The sense of experiencing,

Is verily the experience!

The sense of "having known", 

Is verily the knowledge!

The sense of possessing,

Is verily the possessor!

The One who has realized this truth, 

How could be the doer? 

The One who has realized this truth,

How could be the experienced, 

The One who has realized this truth,

How could be the pundit?

The One who has renounced everything, 

How could be the possessor?

Such a One is verily the existence,

Such a One is verily the Brahman!

Such a One is verily the Realized,

Such a One is verily the Consciousness!

Such a One is Only Kaivalyam,

Such a One is Witness only, 

Such a One is Indivisible,

Unique, Reality without 'the other'

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।। Om namo bhagavate Sri RamaNAya ।।

Dedicated at the 

Lotus feet of Bhagavan Sri Ramana! 

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