गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

स्थावर लिंग

।। श्री अरुणाचलेश्वराय नमः।।

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ब्रह्माजी ने आगे कहा :

'विनयपूर्वक यह निवेदन करके मैंने हाथ जोड़कर देव-देवेश्वर भगवान् को बारम्बार प्रणाम किया, और उन्हीं के समीप बैठ गया। तत्पश्चात् नूतन जलधर के समान गम्भीर ध्वनिवाले श्री विष्णु ने शंकरजी की महिमा के कीर्तन द्वारा अपनी विशुद्ध वाणी को और भी कृतार्थ करते हुए कहा :

'तीनों लोकों के अधीश्वर! प्रभो!  गंगाधर!  जगन्नाथ! विरुपाक्ष चन्द्रशेखर! आपकी जय हो! शम्भो! आपकी दया असीम है और वह सभी भक्तजनों पर सदा अकारण बढ़ती रहती है, जिससे उन भक्तों में स्वच्छ और पूर्ण ज्ञान का आधान होता है। प्रायः सम्पूर्ण विद्याओं का पालन और समस्त ऐश्वर्यों का संग्रह भी आपकी कृपा से ही संभव है। आपको जानने में आप ही समर्थ हैं, अथवा जिसको आपका कृपाप्रसाद प्राप्त है, वह समर्थ हो सकता है। क्या भ्रमर किसी कीट को आकृष्ट करके उसे अपने स्वरूप की प्राप्ति नहीं करा देता? उसी प्रकार आप भी अपने तुच्छ भक्त को अपनाकर अपने समान बना लेते हैं। क्या देवता इसीलिए प्रभावशाली नहीं होते हैं, क्योंकि वे आपके ही अंश से उत्पन्न हुए हैं? क्या तपाये हुए लोहे में जो अग्निदेवता स्थित हैं, उनमें जलाने की शक्ति नहीं होती? देव! शंकर!  सर्वाधार! आप कृपा करके हमारे नेत्रों को आनन्द प्रदान करनेवाली अपनी दिव्य मूर्ति का दर्शन कराइये!'

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(निरन्तर...)


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